Bhatkhande's Sargam Geet Sangraha
Price: | Rs.100.00 |
Detail Of Bhatkhande's Sargam Geet Sangraha
ISBN | 8185057370 |
Pages | 162 |
Language: | Hindi |
Size(in cm): | 8.5 inch X 5.5 inch cm |
Weight(in grams): | 180(approx) |
Description:
प्रस्तावना
परम कृपालु परमेश्वर की समस्त चेतन सृष्टि को आनंद प्रदान करनेवाली संगीत ;जिसे दैवी कला की उपमा दी हैद्ध जैसी कला को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से आज से चालीस वर्ष पूर्व कतिपय स्थानीय पारसी ग्रहस्थों के सहयोग से स्व० सेठ केखशरु नवरोजी कावराजी ने हमारी गायन उत्तेजन मंडली की स्थापना की थी । गायन जैसी उत्तम कला जो उस समय निम्न वर्ग के लोगों के हाथ में पड़ गई थीएउसका प्रसार संभ्रांत गृहस्थों व उनके कुटुम्ब में करनाए यह इस मंडली का प्रमुख उद्देश्य था । इसी। उद्देश्य से प्रतिमास काफी व्यय करके शौकीन सभासदों को स्थानीय तथा बाहर से आनेवाले बड़े उस्तादों के द्वारा यह मंडली आज भी उच्च प्रकार के गायन की शिक्षा देती है उसी प्रकार इन उस्तादों के द्वारा सिखाए गए गायनों की समय समय पर बैठकें भी होती रहती हैं । इन बैठकों की विभिन्न राग रागिनियों के आधार पर लगभग ११०० गायनों से युक्त एक बृहत् पुस्तक हमारी मंडली ने ईसवी सन १८८७ में प्रकाशित की थी । किंन्तु ऐसी आमने सामने सिखाने की रीति में विशेष लाभ दृष्टिगोचर न होने सेए सरलता से शास्त्रानुसार ज्ञान प्राप्त हो सकेए ऐसी किसी नवीन रीति का प्रवेश गायन कला में करने के लिए बहुत खोज कीए किन्तु अन्त में वह इसलिए व्यर्थ हुई कि संस्कृत से अनभिज्ञ आधुनिक उस्तादों से कुछ भी आशा नहीं की जा सकती थी । फिर भी सौभाग्य से जिस व्यक्ति की खोज में थेए ऐसे एक संगीत के वास्तविक पुजारी और विद्वान् इस मंडली के ही औनरेरी लाइफ मेम्बर पं० विष्णुनारायणए भातखण्डे ठण्।ण्ए स्ण्स्ण्ठण् हाई कोर्ट के वकीलए मिल गए हैंए जिनकी सहायता से उपरोक्त उद्देश्य पूर्ण होगाए ऐसा विश्वास है । इन्होंने हिन्दुस्तान के कोने कोने में घूमकर संगीत सम्बन्धी संस्कृत व अन्य भाषाओं के कई प्राचीन मूल्यवान् ग्रन्थों का सरकारी व शौकीन गृहस्थों तथा राजाओं के व्यक्तिगत भंडारों में से खोजकर संग्रह किया है । उसी प्रकार प्रत्येक स्थान के गायन प्रवीण व संगीत शास्त्रियों के साथ चर्चा करकेए धन व अमूल्य समय का बलिदान करकेए फल प्राप्त करने का जो उत्साह प्रदर्शित किया है तथा उसमें विजय प्राप्त की है ऐसा उत्साह आज तक किसी शौकीन गायक ने दिखाया होए ऐसा सुना नहीं है । ऐसा एक प्रथम प्रसिद्ध महाविद्वान् हमारी मंडली में हैए इसके लिए वास्तव में मंडली को भाग्यशाली कहा जा सकता है ।
पं० विष्णु ने शास्त्र की रूढ़ि के अनुकूल विभिन्न राग रागिनियों में उत्तम लक्षण गीतों की रचना की हैए जिनमें रागों के गुण तथा दोष इस प्रकार दर्शाए हैंए जो सीखने वालों को सरलता से समझ में आ सकते हैं । इन लक्षण गीतों की शिक्षाए सीखने वाले को कुछ भी लिए बिनाए वास्तविक मित्रभाव से वे प्राय देते रहते हैंए इसके लिए वे वास्तव में धन्यवाद के पात्र हैं ।
उन्होंने हमारी मंडली की कार्यवाहक सभा की इच्छानुसारए उपरोक्तए संभ्रांत सज्जनों में इस शास्त्र का प्रचार करने के उद्देश्य से यह छोटी पुस्तिका रचकर प्रकाशित करने के लिए इस मंडली को भेंट की हैए जिसके लिए हम उनका हृदय से उपकार मानते हैं । इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य प्रारम्भिक शिक्षार्थियों को प्रचलित हिंदुस्तानी रामस्वरूपों का साधारण ज्ञान कराने के उद्देश्य सेए इसमें विभिन्न रागों की काफी सरल स्वर मालिकाएँ लिखी हैं । यह यदि शौकीनों के उपयोग में आएगी तो इसकी पृष्ठभूमि में किए गए श्रम का सम्पूर्ण मूल्य प्राप्त हो जाएगा । विशेषकर इस पुस्तक की रचना गुजराती पाठक वर्ग के लिए की गई होने से पं० विष्णु की रचना को वैसा स्वरूप देने का कार्य एक अनुभवीए पुरानी तथा प्रवीण सभासद कवि फिरोजशाह रुस्तम जी बाटलीवाला को सौंपा गयाए जो कि इस मंडली के हितार्थी ऑनरेरी लाइफ मेंबर हैंए जिन्होंने पं० भातखण्डे के पास से संगीत का काफी ज्ञान प्राप्त किया है तथा जिनकी कवित्वशक्ति व संगीत शिक्षण देने की पद्धति प्रसिद्ध है । उन्होंने यह काय प्रसन्नता के साथ कर दिया हैए जो उनके लिए शोभास्पद है।
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