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Home » Badi samasya chhota samadhan
Badi samasya chhota samadhan

Badi samasya chhota samadhan

Author: Naruttam Puri
0 reviews | 0 reviews
Brand: 10
Binding: Hard bound
Pages: 344


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Price: Rs.350.00


Detail Of Badi samasya chhota samadhan

ISBN 81-76810983
Pages 344
Language: Hindi
Weight(in grams): 400(approx)

Description:

कोई भी वस्तु या पदार्थ वास्तव में रूप ;आकार तथा रंगद्ध, गुण ;उसकी विशेषताऐं, प्रभाव या गुण-दोषद्ध व नाम ;संज्ञाद्ध की एक गाँठ/संयोजन होता है।  अतः रूप, गुण तथा नाम में एक निश्चित तथा घनिष्ठ सम्बन्ध् होता है। जिस से व्यवहार में उपरोक्त तीनों में से एक घटक का भी प्रत्यक्ष होने पर शेष दो घटक तुरंत या शनैः शनैः स्पष्ट हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इनमें से एक को जानकर शेष दो को थोड़े ही प्रयासों से जान लिया जाता है। जैसे नींबू का नाम सुनते ही सुनने वाला समझ लेता है कि किस पदार्थ की बात की जा रही है। नींबू का रूप व गुण उसका नाम सुनते ही दिमाग में खुद स्पष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार यदि नाम न लेकर यह कहा जाए कि ‘बहुत ज्यादा खट्टे रस वाली वस्तु है’ तो भी सुनने वाला दो-एक अनुमान लगाकर समझ जाता है कि वह वस्तु नींबू होगी। ;अगर गुण बता दिया जाए कि ‘नजर उतारने में भी उपयोगी है, गर्मियों में चीनी/नमक वेफ साथ पानी में मिलाकर पीने से राहत देता है आदि’ तो दो-एक अनुमान भी नहीं लगाने पड़ते। सीध ही ‘नींबू’ दिमाग में स्पष्ट हो जाता है।द्ध और यदि नाम या गुण न बताकर वेफवल रूप ही स्पष्ट किया जाएµकि ‘छोटा सा गोल, पीले रंग की वस्तु जिसमें सपेफद बीज होते हैं और काटकर दबाने पर रस निकलता है या रस से भरा होता है।’ तो भी सुननेवाला सहज ही निष्कर्ष रूप में नींबू का नाम लेता है। समझ जाता है कि बात नींबू की हो रही है। अर्थात् नाम, रूप और गुण में से एक का भी ज्ञान हो जाए तो शेष दो को सहजता से या मामूली प्रयास से ही जाना जाता है, क्योंकि नाम, रूप और गुण में एक सुनिश्चित तथा घनिष्ठ सम्बन्ध् होता है। यह व्यवहारिक सत्य है। पूर्वकथित परिणाम तब सरलता से प्राप्त हो सकते हैं, जब नाम/रूप/गुण वेफ विषय में सुनने वाले को उस पदार्थ को प्रत्यक्ष व अनुभव करने या सुनने-जानने का पहले अवसर मिला हो। किन्तु जो ‘नींबू’ वेफ विषय में वुफछ भी न जानता हो, जिसने पहले उसे कभी देखा-चखा-सूंघा न हो, अथवा उसकी विशेषताओं वेफ विषय में उसने वुफछ भी सुना-पढ़ा न हो, तब वेफवल नाम/रूप/गुण एक घटक को जानकर शेष दो को जान पाना क्या संभव होगा? स्थूल दृष्टि से देखें तो उत्तर नकारात्मक होगा। परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो यह दीर्घकाल वेफ अभ्यास से शनैः शनैः संभव हो पाएगा, क्योंकि नाम, रूप, गुण में परस्पर सुनिश्चित व घनिष्ठ सम्बन्ध् है। अतः इनमें से किसी एक घटक पर भी यदि मनन-चिंतन-ध्यान का नित्य तन्मयता से अभ्यास होगा तो देर-सवेर शेष दो अज्ञात घटक स्पष्ट होने लगेंगे। ;जाप, भजन आदि इसी आधार पर पफल देते हैंद्ध।
प्रत्येक पदार्थ/वस्तु/शक्ति/सत्ता/ देवता आदि वेफ साथ भी नाम, रूप, गुण का यह सि(ांत लागू होता है। इसवेफ अतिरिक्त जो व्यापक/महान शक्तियाँ/सत्ताएँ हैं ;ग्रह, देवता, तत्त्व आदिद्ध उनकी विभुता व प्रभुता वेफ कारण हर एक पदार्थ/सत्ता में कहीं न कहीं उनवेफ कारण/प्रतिनिधि विद्यमान रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहंे तो हर एक रंग, आकार, अक्षर, शब्द, अंक, वनस्पति, प्राणी, पदार्थ आदि किसी न किसी व्यापक शक्ति/दिव्य सत्ता का कारक/प्रतिनिधि होता है। अतः जिसे प्रत्यक्ष कर पाना इन्द्रियों वेफ लिए संभव नहीं होता, या जिन तक पहुँचना/साक्षात् करना मनुष्य की सामथ्र्य से परे होता है, उनको उनवेफ प्रतिनिधि/कारकों वेफ माध्यम से जाना/समझा जा सकता है। अथवा उनवेफ माध्यम से/उनको आधार बनाकर उनसे सम्बन्धित शक्तियों/दिव्य सत्ताओं से कृपा/प्रभाव/लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यही मन्त्रा, तन्त्रा, यन्त्रा आदि का आधार है। यही उनवेफ प्रभाव की वैज्ञानिकता है।
क्या शब्द की अर्थशक्ति वेफ प्रभाव से हम अपने विचार तथा भाव दूसरों तक नहीं पहुँचा देते। क्या मात्रा एक ही अपशब्द से हम दूसरे को शांत मनःस्थिति को बदल नहीं देते। अथवा एक ही शब्द ;धन्यवाद या साॅरी आदिद्ध से कृतज्ञता-ज्ञापन या खेद प्रदर्शन या अभिवादन करवेफ हम दूसरे को प्रसन्न नहीं कर देते। यह तो मन्त्रा/शब्द का मात्रा अर्थ प्रभाव है। किन्तु उसकी लक्षणा शक्ति, अभिव्यंजना शक्ति वेफ माध्यम से तो अर्थ से भिन्न/अनकही बात भी कह दी जाती है। जैसेµ‘मुर्गे ने बांग दे दी।’ ऐसा कहने पर, सुबह होने की बात न कहते हुए भी सुनने वाला समझ जाता है कि सुबह हो गई है। परन्तु ये सब शक्तियाँ तो अत्यंत साधारण हैं। शब्द तो स्वयं में शक्तियों का भंडार हैं। उसकी ‘तरंग शक्ति’ बड़े-बड़े पहाड़ों को धराशायी कर डालती है। और सृष्टि वेफ निर्माण में भी समर्थ होती है। ;विस्पफोट/धमावेफ से होने वाले विध्वंस तथा नाद या ध्वनि तरंगों वेफ आन्दोलनों ;वाइब्रेशन्सद्ध से सृष्टि का होना विज्ञान सम्मत हैद्ध। हर शब्द/अक्षर किसी न किसी देवता/शक्ति का बीजमन्त्रा है। वह जपे जाने पर वैसी ही तरंगें व प्रभाव उत्पन्न करता है जैसी उस देवता/शक्ति वेफ प्रभाव वेफ अनुवूफल होती है। अतः मन्त्रा जाप से साधक को अपेक्षित परिणाम प्राप्त होते हैं। यह संक्षेप में मन्त्रा विज्ञान है। जो अति सूक्ष्म स्तर पर क्रिया करने वेफ कारण भले ही वुफछ विलम्ब में प्रतिक्रिया/प्रभाव उत्पन्न करता है, किन्तु सुनिश्चित रूप से करता है।
जब अक्षरों/शब्दों/वाक्यों वेफ माध्यम से प्रभाव लिया जाता है ;तत् सम्बन्धी देवता/शक्ति को अनुवूफल बनाया जाता हैद्ध तब यह बीजमन्त्रा/मन्त्रा/स्तोत्रा/प्रार्थना कहा जाता है। इस प्रणाली में ध्वनि ;तरंगेंद्ध, अर्थ तथा भाव की विशेषता प्रभाव दिखाती हैं। जिनको निश्चित/निर्दिष्ट आवृत्ति संख्या तक अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने वेफ लिए जपना/पढ़ना पड़ता है। इसी को मन्त्रा साधना या मन्त्रा विज्ञान कहा जाता है।
यदि अंकों, संख्याओं, आकृतियों वेफ माध्यम से उन से सम्बन्धित देवताओं/शक्तियों को अनुवूफल बनाकर उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है तो उसे ‘यन्त्रा साधना’ कहते हैं। अक्षरों/शब्दों की ही भांति अंक/संख्या तथा आकार व रंग भी किसी न किसी देवता/शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। ;जैसेµपफोन पर विभिन्न क्रमों में अंक मिलाए जाने पर व्यक्ति का सम्पर्वफ भिन्न-भिन्न व्यक्तियों से हो जाता हैद्ध। यदि आवश्यक हो तो ‘यन्त्रा’ वेफ साथ ‘मन्त्रा’ का संयुक्त रूप से प्रयोग भी किया जाता है। और जब ग्रहों/देवताओं/शक्तियों का कारक/प्रतिनिधि पदार्थों, वस्तुओं, जडि़यों/वनस्पतियों आदि को माध्यम बनाकर उनसे सम्बन्धित शक्तियों/देवताओं को अनुवूफल बनाकर उनसे लाभ पाने का प्रयास किया जाता है, तब ‘तन्त्रा साधना’ कहीं जाती है। अतः मन्त्रों में अक्षरों व शब्दों/ध्वनि को, यन्त्रों में अंकों व आकृतियों को तथा तन्त्रा में पदार्थों/वस्तुओं को मुख्य रूप से साधन/माध्यम बनाया जाता है ;आवश्यक हो तो तन्त्रा वेफ साथ भी यन्त्रा/मन्त्रा का संयुक्त प्रयोग होता हैद्ध। बिना मन्त्रा/यन्त्रा/तन्त्रा का सहारा लिए जब अपने शरीर को ही माध्यम बनाकर विशिष्ट कर्मों से यह प्रयास किया जाए तो उसे ‘तपस्या’ कहते हैं और वेफवल मन, बु(ि, प्राण, ज्ञानेन्द्रियों को ही एकाग्र करवेफ प्रयास करने पर ‘ध्यान साधना’ होती है। ‘ध्यान साधना’ वेफ द्वारा भी देवताओं/शक्तियों की अनुवूफलता व कृपा प्राप्त होती तथा अपना सामथ्र्य बढ़ता है। नाम, रूप और गुण का चिन्तन/मनन ही एकाग्रता पूर्वक करना यहाँ ध्येय होता है। परन्तु ‘ध्यान साधना’ और ‘तप साधना’/तपस्या हर किसी वेफ लिए संभव नहीं होते। इन्हें विशेष मनोबल, दृढ़ता/संकल्प/हठ तथा विशेष एकाग्रता की सामथ्र्य से सम्पन्न लोग ही कर पाते हैं। इसलिए जनसामान्य पूजा, उपासना, उपदेश श्रवण तथा विभिन्न उपायों व टोटकों वेफ माध्यम से ही काम चलाते हैं।
परन्तु जब समस्याऐं विकट/गम्भीर/जटिल हों, अथवा पूर्वकृत पापों वेफ कारण बने ट्टण/दोष/शाप व्यक्ति को पीडि़त कर रहे हों, अथवा दशा ;समयद्ध, गोचर ;परिस्थितियाँद्ध अत्यंत प्रतिवूफल और सामथ्र्य ;वुंफडली में लग्नेश आदि का बल तथा शुभ योगद्ध अत्यंत अल्प हो तब ज्योतिषीय उपायों ;रत्न/धतु का धरण करना, ग्रहों वेफ दान आदि करनाद्ध तथा टोटकों का प्रभाव व्यक्ति पर उसी प्रकार नहीं होता,  

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